विश्नोई समाज के 29 नियम, जन्म के बाद रखा जाता है बच्चे को मां से अलग

विश्नोई समाज के 29 नियम, जन्म के बाद रखा जाता है बच्चे को मां से अलग

मानव समाज में एक ऐसा समाज जो अपने कठिन नियमों के कारण जाना जाता है। यह अपने धर्म के लिए जान तक दे देते हैं। आज हम बात करेंगे विश्नोई समाज के 29 नियमों के बारे में, बिश्नोई समाज की स्थापना गुरु जंभेश्वर भगवान ने की थी। जंभेश्वर भगवान का जन्म 1508 ईस्वी में हुआ था और जंभेश्वर भगवान का आज 573 व जन्मोत्सव मनाया जा रहा है। विश्नोई पंत की स्थापना इन्होंने 500 साल पहले की थी।

बताया जाता है कि जंभेश्वर भगवान अपने जीवन के शुरुआती साल साल तक कुछ भी नहीं बोले थे ना ही उनके चेहरे पर कोई मुस्कान थी। उसके बाद इन्होंने 27 साल तक गोपालन किया और पेड़ पौधों को काटना और जीव हत्या करना वह पाप मानते थे।

बिश्नोई समाज के 29 नियम

बिश्नोई समाज को खास तौर पर उनके 29 नियमों के कारण जाना जाता है इनमें से 9 नियम जानवरों की रक्षा के लिए बनाए गए हैं और 7 नियम समाज की रक्षा के लिए बनाए गए हैं और उसके बाद 10 नियम उनके खुद की रक्षा और अच्छे खान-पान अच्छे स्वास्थ्य के लिए बनाए गए हैं बाकी 3 नियम आध्यात्मिक ज्ञान भगवान की पूजा पाठ करने की विधि के बारे में बताया गया है। तो चलिए हम आपको बताते हैं विश्नोई समाज के 29 नियम कौन-कौन से हैं।

यह है विश्नोई समाज के 29 नियम

30 दिन सूतक रखना
5 दिन माहवारी वाली महिला घर का काम नहीं करेगी
हर दिन सुबह स्नान करना
बाहरी और आंतरिक पवित्रता रखना
संध्या तक उपासना करना
संध्या के समय आरती और हरी गुण गाना
सील का पालन व संतोष रखना
निष्ठा और प्रेम पूर्वक हवन करना
पानी, ईंधन और दूध को छानकर प्रयोग करना
क्षमा, दया, धारणा करना
चोरी नहीं करना
हरे वृक्ष नहीं काटना
सोच समझ कर बोलना
झूठ नहीं बोलना
दूसरों के निंदा नहीं करना
वाद विवाद नहीं करना
भगवान विष्णु का भजन करना
अमावस्या का व्रत रखना
जीवों पर दया करना
काम, क्रोध आदि को वश में करना
थाट अमर रखना
रसोई अपने हाथ से बनाना
बेल बधिया नहीं कराना
नशे की चीज नहीं खाना
तंबाकू का सेवन नहीं करना
भांग नहीं पीना
शराब नहीं पीना
मांस नहीं खाना
नीला वस्त्र और नील का त्याग करना

खेजड़ी को माना जाता है पवित्र वृक्ष

बिश्नोई समाज में खेजड़ी के पेड़ को पवित्र माना जाता है राजस्थान के मारवाड़ में खेजड़ली नामक गांव में 1730 ईस्वी में जोधपुर के महाराज द्वारा पेड़ों को काटने का प्लान बनाया गया और जब पेड़ काटने के लिए लोग वहां पहुंचे तो बिश्नोई समाज की महिला अमृता देवी ने अपनी तीन बेटियां आशु, रत्नी, और भागू के साथ अपने प्राण त्याग दिए, उन पेड़ों को बचाने के लिए।

साथ ही वहां पर 363 से अधिक विश्नोई समाज के लोगों ने अपने प्राण खेजड़ी के पेड़ों को बचाने के लिए त्याग दिए। इसलिए बिश्नोई समाज में आज भी अमृता देवी को शहीद का दर्जा दिया जाता है। साथ ही खेजड़ी को एक पवित्र पेड़ माना जाता है।

बिश्नोई समाज का मुख्य मंदिर

बिश्नोई समाज का मुख्य मंदिर मुक्तिधाम मुकाम है जो राजस्थान के बीकानेर जिले के नोखा में स्थित है। वहां पर गुरु जंभेश्वर भगवान की समाधि भी है। इस जगह हर साल मेला भी लगता है। अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा का प्रधान कार्यकाल भी मुकाम में स्थित है।

विश्नोई समाज के 29 नियम

बच्चों को जन्म के बाद रखा जाता है मां से अलग

बिश्नोई समाज में बच्चों को जन्म के बाद उसकी मां से 29 दिनों तक अलग रखा जाता है उसके बाद 30वें दिन हवन होता है और बच्चे को पाहल का पानी पिलाया जाता है।

गुरु जंभेश्वर के 120 शब्दवाणी से इस पानी को मंत्रित किया जाता है और इस पानी को बच्चों को पिलाया जाता है जिसे वह विश्नोई समाज का हो जाता है। दरअसल पाहल का पानी एक मंत्रीत पानी होता है जिसे यह लोग गंगाजल की तरह पवित्र समझते हैं।

मरने के बाद शव को दफनाते हैं

विश्नोई समाज के लोग मरने के बाद शव को जलाते नहीं दफनाते हैं। विश्नोई समाज का मानना है कि पुनर्जन्म जैसी कोई चीज नहीं होती है कर्म के हिसाब से जो भी होता है वह सब इसी जन्म में होता है।

इनकी पूजा इबादत जो है वह सब पर्यावरण से जुड़ी हुई होती है। साथ ही यह पेड़ पौधों को काटना भी सही नहीं समझते हैं इसलिए यह शव को जलाते नहीं है बल्कि उसे दफनाते हैं।

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Q. 1 बिश्नोई समाज के लोग ज्यादातर कहां पर रहते हैं

Ans. बिश्नोई समाज के लोग ज्यादातर राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में रहते हैं

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